
नई दिल्ली. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी “प्रधानमंत्री मुफ्त बिजली योजना” के तहत देशभर में 1 करोड़ घरों में सौर ऊर्जा प्रणाली लगाने का लक्ष्य रखा गया है। इस योजना के तहत उपभोक्ताओं को लगभग 78 हजार रुपये तक की सब्सिडी भी दी जा रही है, जिससे आमजन को राहत मिले। हालांकि, यह महत्वाकांक्षी योजना अब कई चुनौतियों से जूझ रही है और अपने निर्धारित लक्ष्यों से दूर होती नजर आ रही है। इस योजना के अंतर्गत डीसीआर (घरेलू सामग्री आवश्यकता) वाले सोलर पैनल का प्रयोग अनिवार्य है, जिनका निर्माण भारत में ही होता है। सरकार का उद्देश्य इससे घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है। पिछले छह महीनों में सोलर पैनलों की मांग में जबरदस्त वृद्धि हुई है, लेकिन आपूर्ति सीमित है। भारत में सौर पैनल बनाने वाली गिनी-चुनी कंपनियां ही हैं और सरकार का इस पर कोई सीधा नियंत्रण नहीं है। सौर पैनलों की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि ने उपभोक्ताओं और सोलर इंस्टालेशन करने वाले पेशेवरों दोनों को प्रभावित किया है। पिछले सात महीनों में पैनलों की कीमतों में 6 रुपये प्रति वाट तक की वृद्धि हो चुकी है, जबकि नीति में कोई बदलाव नहीं हुआ है। इसके बावजूद, सरकार की ओर से न तो कोई स्पष्टता दी गई है और न ही निर्माता कंपनियों को जवाबदेह ठहराया जा रहा है। गर्मी के मौसम में जब सौर ऊर्जा की मांग चरम पर है, बाजार में सोलर पैनलों की भारी कमी देखी जा रही है। वितरकों के अनुसार, पैनलों की उपलब्धता में अभी दो महीने और लग सकते हैं। इसके अलावा, सोलर इन्वर्टर की भी कमी हो गई है, और इसकी सप्लाई में 1-2 महीने का समय लग सकता है। इस सबके बीच, राष्ट्रीय पोर्टल, जो इस योजना के लिए महत्वपूर्ण है, बार-बार अपडेट होता रहता है और यह सोलर पेशेवरों के लिए परेशानी का सबब बन गया है। इससे न केवल इंस्टालेशन में देरी हो रही है, बल्कि ग्राहकों को बिजली उत्पादन शुरू होने में भी लंबा इंतजार करना पड़ता है। अखिल भारतीय अक्षय ऊर्जा संघ ने सरकार से आग्रह किया है कि वह सोलर पैनल निर्माताओं पर नियंत्रण स्थापित करे और मांग व आपूर्ति के अंतर को पाटे, ताकि यह योजना सुचारू रूप से चल सके। इस बीच, उपभोक्ताओं से भी अपील की गई है कि वे धैर्य बनाए रखें और जल्दबाज़ी में किसी भी अनधिकृत व्यक्ति से सौर प्रणाली न लगवाएं। यह एक दीर्घकालिक निवेश है, इसलिए उच्च गुणवत्ता वाली और अधिकृत पेशेवरों द्वारा स्थापित प्रणाली ही चुनें।