अहिल्यादेवी के काम को नाटक के रूप में प्रस्तुत किया गया – सुमित्रा महाजन

नागपुर, 18 अगस्त 2024: पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर के जीवन और उनके समाज सुधारक कार्यों को नाटक के रूप में प्रस्तुत किया गया। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष। पद्मभूषण सुमित्रा महाजन ने पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर त्रिजन्म शताब्दी

'मातोश्री' नाटक में अहिल्यादेवी की भूमिका में ऐश्वर्या शिंदे
‘मातोश्री’ नाटक में अहिल्यादेवी की भूमिका में ऐश्वर्या शिंदे

समिति और मुद्रा इवेंट्स द्वारा आयोजित ‘मातोश्री’ नाटक के प्रीमियर में कहा कि यह नाटक समाज सुधारक अहिल्यादेवी के कार्यों को व्यापक जनता के सामने लाने के लिए लिखा गया है। यह आयोजन रेशिमबाग के कविवर्य सुरेश भट ऑडिटोरियम में हुआ।

कार्यक्रम की शुरुआत पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर की छवि पर पुष्पांजलि अर्पित करके की गई। इस अवसर पर पूर्व मंत्री राम शिंदे,अहिल्यादेवी के वंशज युवराज यशवंतराव होलकर, पूर्व सांसद पद्मश्री डॉ. विकास महात्मे, राष्ट्र सेविका समिति की मुख्य संचालिका शांताक्का, प्रमुख कार्यवाह सीता गायत्री अन्नदानम, सांसद शंकर लालवानी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के महानगर संघचालक राजेश लोया, अनुप घुमरे, मनीषा काशीकर सहित कई प्रमुख हस्तियाँ उपस्थित थीं। कार्यक्रम का संचालन श्रद्धा भारद्वाज ने किया और आभार प्रदर्शन अनुप घुमरे ने किया।

‘मातोश्री’ नाटक में अहिल्यादेवी की भूमिका में ऐश्वर्या शिंदे ने बेहतरीन प्रदर्शन किया। नाटक के अन्य प्रमुख कलाकारों में अमोल तेलपांडे, जीतेंद्र शिंदे, नीता खोत, मंजूषा देव, शरयू माटे, वर्षा मानकर, मयूरी, श्वेता पाटकी, प्रणीत पोचमपल्लीवार, मंगेश बावसे, विजया शिंदे, वैशाली पोचमपल्लीवार, दीप्ति भाके, विनया भोंगाड़े और अमित सावरकर शामिल थे। नाटक के साउंडट्रैक का कार्य बंडू पदम ने किया, जबकि प्रकाश योजना अभिषेक बेलावर द्वारा की गई। मंच व्यवस्था में साहिल नंदेश्वर, अश्विन चहांडे, एकता बालापुरे और सूरज मिश्रा ने योगदान दिया। नृत्य निर्देशन श्रीकांत धाबड़गांवकर ने किया और स्वर-गायक गौरख चाटी थे। टीम मैनेजर असिक बख्शी ने सभी कार्यों का समन्वय किया।

नाटक ‘मातोश्री’ में अहिल्यादेवी होलकर की जीवनी के विभिन्न पहलुओं को दर्शाया गया है। अहिल्यादेवी का विवाह 12 वर्षीय बहादुर खंडेराव होलकर से हुआ था, जब वह स्वयं केवल आठ वर्ष की थीं। उनके वीर पति खंडेराव कुम्भेरी के युद्ध में शहीद हो गए। 29 साल की उम्र में अहिल्यादेवी ने सती होने से इनकार करते हुए अपनी प्रजा की भलाई के लिए जीने का निर्णय लिया। उन्होंने धर्म और परंपराओं से परे जाकर एक कल्याणकारी राज्य का निर्माण किया और समाज सुधारक के रूप में अपना स्थान बनाया।

इस नाटक के माध्यम से दर्शकों को अहिल्यादेवी के जीवन की प्रेरणादायक कहानी और उनके अद्वितीय कार्यों की झलक मिली, जिससे समाज को सुधारने के उनके प्रयासों को और समझा जा सका।

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