
मुंबई – महाराष्ट्र सरकार द्वारा पहली कक्षा से हिंदी विषय को अनिवार्य करने के निर्णय के खिलाफ मराठी भाषा प्रेमी संगठनों ने तीव्र विरोध जताया है। इस संदर्भ में ‘मराठीच्या व्यापक हितासाठी’, ‘वैश्विक मराठी परिवार’ और ‘महाराष्ट्र सांस्कृतिक आघाडी’ के प्रमुख संयोजक श्रीपाद भालचंद्र जोशी ने मुख्यमंत्री एवं शालेय शिक्षण मंत्री को पत्र लिखकर कई गंभीर मुद्दे उठाए हैं।
पत्र में उल्लेख किया गया है कि—
1. महाराष्ट्र में मराठी राजभाषा है और पहली से दसवीं तक मराठी विषय सभी बोर्डों के लिए अनिवार्य है। मराठी भाषा नीति में 11वीं और 12वीं तक मराठी को अनिवार्य करने का उल्लेख है, लेकिन अब तक कानून में आवश्यक संशोधन नहीं किया गया है। इसकी बार-बार मांग करने के बावजूद कार्रवाई नहीं हुई है।
2. इसके विपरीत सरकार ने बिना किसी स्पष्ट मांग या कारण के हिंदी को पहली कक्षा से अनिवार्य कर दिया है, जो मराठी भाषा नीति के खिलाफ है। यह मराठी भाषा के साथ अन्याय है और इसे तत्काल वापस लिया जाना चाहिए।
3. महाराष्ट्र में हिंदी के प्रति कोई विरोध नहीं है, लेकिन हिंदी की अनिवार्यता से अनावश्यक राजनैतिक तनाव और भाषाई टकराव की स्थिति बन सकती है, जो राज्य के भाषिक सौहार्द के लिए खतरा है।
4. राज्य त्रिभाषा सूत्र का पालन करता है, लेकिन जबरन हिंदी लागू करने से दक्षिण भारत की तरह द्विभाषा सूत्र की मांग को बल मिल सकता है।
5. पहली कक्षा से तीन भाषाओं का बोझ बच्चों पर डालना शिक्षा शास्त्र और बाल मनोविज्ञान की दृष्टि से अनुचित है।
6. जिस राष्ट्रीय शिक्षा नीति को राज्य सरकार लागू कर रही है, उसमें भी हिंदी की अनिवार्यता नहीं है।
7. CBSE बोर्ड का पाठ्यक्रम और NCERT की किताबें राज्य में अनिवार्य नहीं होनी चाहिए, इसकी भी पहले मांग की जा चुकी है.
8. मराठी भाषा नीति के अनुसार, सभी बोर्डों के पाठ्यक्रम और पुस्तकों को मराठी में उपलब्ध कराया जाना चाहिए ताकि मराठी माध्यम से शिक्षा को बढ़ावा मिले।
श्रीपाद जोशी ने मांग की है कि हिंदी के साथ-साथ अन्य किसी भी विषय की जबरन अनिवार्यता को तुरंत समाप्त किया जाए और मराठी भाषा के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए उचित कदम उठाए जाएं। यह मांग पत्र महाराष्ट्र में शिक्षा के माध्यम से मराठी की स्थिति मजबूत करने की दिशा में एक अहम पहल माना जा रहा है।